Kaise Plant Tissue Culture ki Modern Technology ko apanakar Bhari Munafa kamaa sakate hai? Bharatiy Kisano ke liye Golden Opportunities||
कृषि विज्ञान केंद्र से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद टिशू कल्चर को घर पर भी उगाया जा सकता है।
अर्थव्यवस्था और व्यापार के ग्लोबलाइजेशन के समय मेंं, उद्योगपतियों को गुणवत्ता और बड़े पैमाने पर उत्पादन के बारे मेंं कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता हैंं। किसानों को भी इस स्थिति का सामना करना पड़ता हैंं। उन्हें खेती मेंं आधुनिक तकनीक को अपनाना होगा और उन्हें एक उद्यमी की तरह सोचना होगा। पारंपरिक खेती अब पर्याप्त नहीं हैं। विश्व कृषि क्षेत्र के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए एक थोक तथा उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादन अपरिहार्य हैं। इस चुनौती को पूरा करने के लिए ऊतक संवर्धन तकनीक बहुत ही आशाजनक तरीका हैंं। हर किसान को इसके बारे मेंं पता होना चाहिए। इसका उत्पादन कंपनियों के पेशेवर प्रयोगशाला में और साथ ही छोटे किसानों द्वारा घर पर उत्पादन करने के लिए किया जा सकता हैं।
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Video: The Top Ways to Succeed in Plant Tissue Culture in Hindi||
Uttak Sanvardhan ke fayade|
टिशू कल्चर क्या है?
यह एक ऊतक संवर्धन विधि (Tissue culture method) है जिसमें किसी भी जानवर या पौधे से ऊतक के टुकड़े एक कृत्रिम वातावरण में स्थानांतरित किए जाते हैं जिसमें वे जीवित रह सकते हैं और उगाए जा सकते हैं। यहा हम पौधे पर की जाने वाली संवर्धन प्रक्रिया के बारे में बात करेंगे।
पौध का ऊतक संवर्धन (Plant Tissue Culture) क्या है?
प्लांट टिश्यू कल्चर नयी कौशिकाए के संवर्धन हेतु पौधों के टुकड़े पर की जाने वाली एक प्रक्रिया है। पौधे के उत्तक (टिशू) को एक विशिष्ट और नियंत्रित वातावरण में संवर्धित कर के उगाये जाते हैं। ऊतक संवर्धन प्रक्रिया से हम उच्च गुणवत्ता वाले पौधों बड़ी मात्र में जल्दी से विकसित कर सकते है, जिसे 'माइक्रोप्रोपेगेशन' के रूप में जाना जाता है। फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए टिशू कल्चर प्रोसेस फायदेमंद है। क्या यह सीमित मात्रा में घर पर 'डू इट योर सेल्फ' (DIY) प्रक्रिया हो सकती है या बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए पेशेवर फर्मों में संसाधित की जा सकती है। हालांकि, टिशू कल्चर की प्रक्रिया सरल लगती है लेकिन सर्वोत्तम परिणाम के लिए कुछ आवश्यक सावधानियां हैं। जैसे की टिशू कल्चर की प्रक्रिया दरम्यान विसंक्रमण से संपूर्ण रक्षण और उचित बढ़त माध्यम। जब यह पौधे सफलतापूर्वक बढ़ने लगते हैं, तो उन्हें अधिक बढ़ने के लिए नर्सरी या ग्रीनहाउस में स्थानांतरित किया जाता है। सामनी बीज संवर्धन की प्रक्रिया के मुक़ाबले ऊतक संवर्धन प्रक्रिया तेज है, और किसान थोड़े ही समय में अच्छी गुणवत्ता वाली फसल का उत्पादन कर सकते हैं।
टिशू कल्चर के फायदे और नुकसान:
ऊतक संवर्धन के लाभ।
टिशू कल्चर प्रक्रिया विकासशील देशों की कृषि के लिए बहुत ही आशाजनक साबित हो रहा हैं। यह प्रक्रिया से कम समय में ही नये पौधे बहुल मात्रा में उगाए जा सकते हैं। यह प्रक्रिया शुरू करने के लिए ऊतक की थोड़ी मात्रा भी काफी है। इस प्रक्रिया के तहत उगाये जाने वाली फसल वायरस का सामना करने में ज्यादा सक्षम होती हैं। यह प्रक्रिया वर्ष दरम्यान कभी भी कर सकते है, मौसम पे आधार नहीं रखना पड़ता। इस प्रक्रिया करने के लिए छोटी जगह भी उपयुक्त है। (1/10 वें भाग की जगह में पौधों का दस गुना उत्पाद!) टिशू कल्चर प्रक्रिया बड़े पैमाने पर अपनाकर बजारकी मांग की आपूर्ति करना आसान हो जाता है तथा विविध नई उत्तम जाती की उप-प्रजातियों को भी विकसित किया जा सकता हैं। ऑर्किड जैसे चुनौतीपूर्ण पौधों की खेती करने के इच्छुक लोगों को पारंपरिक मिट्टी की तुलना में ऊतक संवर्धन प्रक्रिया के कारन इच्छित सफलता मिलती है।
ऊतक संवर्धन के नुकसान।
ऊतक संवर्धन की प्रक्रिया में ज्यादा महेनत और समय की जरूरत पड़ती है और तुलना में महंगा होता हैं। एक संभावना यह है कि वे जिस प्रकार के वातावरण में उगाए जाते हैं, उस के कारण संक्रमित बीमारियों के लिए कम सक्षम हो सकते है। यह जरूरी है कि, संवर्धन की प्रक्रिया के पहले, उपकरणो की अच्छी तरह जांच की जाए; वर्ना संक्रमण के कारन नए पौधे की संवर्धन की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होने का खतरा हो सकता हैं। हालांकि सही प्रक्रियाओं का पालन करने पर सफलता दर अधिक होती है, किन्तु टिशू कल्चर की सफलता की कोई गारंटी नहीं है। कभी ऐसा भी होता हैं कि यह प्रक्रिया एक द्वितीय चयापचय रासायनिक प्रतिक्रिया शुरू कर देती है, और यह नये एक्सप्लोरर कोशिकाओं की वृद्धि रोक देते हैं। यदि जतन से टिशू कल्चर कि प्रक्रिया कि जाये तो निष्फल होने कि संभावना बहुत कम हो जाती हैं। इस लिए टिशू कल्चर को ज्यादा से ज्यादा प्रगतिशील किसान स्वीकार कर रहे है। किसान अपने घर में भी एक प्रयोगशाला बनाकर टिशू कल्चर से पौधे का संवर्धन कर सकता है; लेकिन इसके लिए उपयुक्त तालिम लेना आवश्यक है।
भारत सरकारका कृषि विकास के लिए प्रोत्साहन:
भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने कृषि के विकास में क्रांति लाने के लिए प्लांट टिश्यू कल्चर की क्षमता और महत्व को पहचानते हुए, 2006 में जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने National Certification System for Tissue Culture Raised Plants (NCS-TCP) की स्थापना की जिसका उद्देश्य रोग-मुक्त और उच्च गुणवत्ता वाले टिशू कल्चर संयंत्रों के उत्पादन और वितरण के लिए टिशू कल्चर कंपनियों को प्रोत्साहन देना था। दश साल की अवधि मे 2016 तक अपनी स्थापना बाद NCS-TCP ने काफी प्रभाव डाला है। तब से, 96 कंपनियों को मान्यता दी गई है और पांच परीक्षण प्रयोगशालाओं और दो रेफरल केंद्रों को इस प्रणाली के तहत मान्यता दी गई है।केला, आलू, गन्ना, सेब, अनानास, स्ट्रॉबेरी, गेरबेरा, एन्थ्यूरियम, लिलियम, ऑर्किड, बांस, खजूर, सागौन, और अनार भारत के कुछ प्रमुख वनस्पति ऊतक हैं। भारत में प्लांट टिशू कल्चर मार्केट 500 करोड़ रुपये का है। बयान के मुताबिक, टिशू कल्चर उद्योग के लिए कार्यक्रम अनिवार्य नहीं होने के बावजूद, इसके लागू होने के बाद से कुछ समय के भीतर 90 प्रतिशत से अधिक टिशू कल्चर कंपनियां कार्यक्रम का हिस्सा हैं।
किसान टिशू कल्चर की तालिम कहाँ से ले सकते है?
देश के कई संस्थानों में टिशू कल्चर का प्रशिक्षण उपलब्ध है। इसके लिए सर्टिफिकेट लेवल से लेकर डिग्री लेवल तक के कोर्स हैं। किसान इसके बारे में नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से जानकारी ले सकते हैं। किसानों को शिमला में केंद्रीय आलू अनुसंधान केंद्र और मेरठ में आलू अनुसंधान केंद्र में प्रशिक्षित किया जाता है। वहीं कई किसानों को व्यक्तिगत रूप से प्रशिक्षित भी किया जाता है। यदि कोई किसान टिशू कल्चर स्थापित करना चाहता है, तो अनुसंधान केंद्र मदद करता है। अक्टूबर 2020 तक पूरे भारत में लगभग 721 कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) है जिसका काम किसानों को नई तकनीक के बारे में जानकारी एवं प्रशिक्षण देना है। एक कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) भारत में एक कृषि विस्तार केंद्र है। नाम का अर्थ है "कृषि विज्ञान केंद्र"। आमतौर पर एक स्थानीय कृषि विश्वविद्यालय के साथ जुड़े, ये केंद्र भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और किसानों के बीच अंतिम कड़ी के रूप में काम करते हैं, और कृषि अनुसंधान को व्यावहारिक, स्थानीय सेटिंग में लागू करने का लक्ष्य रखते हैं। सभी KVK पूरे भारत में 11 कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थानों (ATARI) में से एक के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। कृषि संस्थानों, राज्य विभागों, आईसीएआर संस्थानों, अन्य शैक्षणिक संस्थानों, या गैर सरकारी संगठनों सहित कई मेजबान संस्थानों के तहत एक केवीके का गठन किया जा सकता है। आईसीएआर वेबसाइट के अनुसार संचालन में 700 केवीके विभाजित हैं:
- 458 राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के तहत,
- 18 केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालयों के तहत,
- 64 आईसीएआर संस्थानों के तहत,
- गैर सरकारी संगठनों के तहत 105,
- राज्य विभागों या अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के तहत 39,
- और अन्य विविध शैक्षिक तहत 16 संस्थानों।
यूपी के इटावा जिले के किसान शिवम तिवारी ने
टिशू कल्चर की खेती से एक करोड़ कैसे कमाए?
शिवम के पिताजी एक किसान है, और बरसो से पारंपरिक तरीके से खेती करते थे। उनके पुत्र शिवम तिवारी इजनेरी कालिज में पढ़ कर इजनेर बने है। हालांकि शिवम को पहले से ही खेती मे रुचि थी इस लिए जब भी छुट्टियों पर घर आते तो पिताजी के साथ खेत पर चले जाते थे । उनका इजनेरी दिमाग यह कहता था की यह खेती का तरीका बदलना चाहिए। नयी तकनीक को अपनाना चाहिए। जब उन्हे टिशू कल्चर के बारे में मालूम हुआ तो अपने पिताजी से अनुरोध किया की वह मेरठ के कृषि विज्ञान केंद्र से आलू के टिशू कल्चर की तालिम प्राप्त करे। वह खुद कालिज मे पढ़ते थे इस लिए टिशू कल्चर की तालिम के लिए वक्त निकालना मुश्किल था, अंतत: उनके पिताजी ने तालिम पूर्ण की । फिर खेत के एक छोटे से हिस्से मे दोनों पिता-पुत्र ने टिशू कल्चर से आलू की खेती का प्रयोग किया, जो बेहद सफल हुआ।
टिशू कल्चर की व्यावसायिक लेब का निर्माण:
फिर उन्होने निष्णातों को बुलाकर कर टिशू कल्चर की व्यावसायिक लेब का निर्माण शुरू किया। जब जब शिवम छूटियों पर घर आते तो लेब चले जाते और जो काम चल रहा हो उस का निरीक्षण करते। जब उनकी पढ़ाई पूर्ण हुई तो नोकरी के लिए कोई कोशिश नहीं की और पूर्ण कालीन खेती अपनाकर अपने पिताजी के साथ जुड़ गये। आज उनके लेब में 15-20 लोग पूर्णकालीन काम करते है और मौसम के दौरान करीब 50 लोगो को रोजगार उपलब्ध होता है । उनकी विकसित की गई खास वेरायटी के लिए उन्हे लायसंस मिला है । उनकेटिशू कल्चर से उगाये हुए बीज यूपी, पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान मे सप्लाई होते है।
शिवम कैसे करते है टिशू कल्चर से आलू की खेती?
इस तकनीक में पौधे के ऊतक को निकाला जाता है। इस पौधे को हार्मोन की मदद से लैब में उगाया जाता है। बहुत कम समय में एक ही ऊतक से कई पौधे पैदा होते है। सेंट्रल पोटैटो रिसर्च इंस्टीट्यूट (CPRI) शिमला से शिवम कल्चर ट्यूब लाकर अपनी लैब में पौधे तैयार करते है। एक कल्चर ट्यूब पर पांच हजार रुपये खर्च होते हैं और 20 से 30 हजार पौधे तैयार होते हैं। इस पौधे से लगभग ढाई लाख आलू (बीज) तैयार किए जाते हैं। शिवम फरवरी में शिमला से आलु केआई कल्चर ट्यूब लाते है और उन्हें अक्टूबर तक लैब में रखते है। लगभग 2 से ढाई महीने बाद बीज तैयार हो जाते हैं। फिर जो पौधे तैयार होते हैं, उन्हें खेत में लगाया जाते है।
शिवम ने कैसे कमाए एक करोड़ रुपए का मुनाफा?
शिवम टिशू कल्चर तकनीक का इस्तेमाल कर 30 एकड़ जमीन पर कुफरी फ्रायम किस्म के आलू तैयार करते हैं। ये आलू चार इंच लंबे हैं। इसका उपयोग बड़े पैमाने पर चिप्स बनाने के लिए किया जाता है। पिछले साल उनका टर्नओवर एक करोड़ रुपये था। उन्होंने हाल ही में कृषि अनुसंधान केंद्र शिमला के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके तहत वे 1000 विधा जमीन के लिए बीज तैयार करेंगे। इसके बाद बीज देश भर के किसानों को भेजे जाएंगे।
"अभी यह तरीका देश में इतना लोकप्रिय नहीं है। इसकी लेब स्थापित करने की लागत महंगी है। हालांकि कई किसान इस विधि से खेती कर रहे हैं। नर्सरी फूल, सजावटी फूल, केले, औषधीय पौधों, आलू, बीट्स, आम, अमरूद सहित कई सब्जियों और फलों के बीज इस अनुष्ठान के साथ तैयार किए जा सकते हैं।
भारतीय किसानो को टिशू कल्चर की यह आधुनिक तकनीक अपनानी चाहिए, क्योंकि जमाना मॉडर्न टेक्नोलोजी का है, सो खेती-उद्योग को भी इसका लाभ उठाना चाहिए।"